''जरा देखिये''
''मासूमों के लहू की प्यासी
निगाहें तो देखियें,
हर सहमे से दिलों की
जरा धडकने तो देखिये,
जुबान हैं उनकी बंद
किन्तु नजरें तो देखिये..
सूनी सड़कों पे बिखरा
इंसान का लहू तो देखिये,
होने लगी हैं अब घुटन
नादान दिलों की हरकतें तो देखिये,
धर्म के नाम पर
मचा कोहराम तो देखिये..
सुने से हर मंजर का
नजारा तो देखिये,
जला दिए हैं जिंदा-जिस्म
उड़ती राख तो देखिये,
इंसानियत के संग इंसान का
खिलवाड़ तो देखिये..''
(ये कविता मैंने आज से लगभग एक साल भर पहले लिखी थी, लेकिन समयाभाव के कारण ब्लॉग पर पोस्ट ना कर सका. ये कविता देश में हुए दंगों के दौरान आंतक के भेंट चढ़े लोगों को समर्पित हैं. भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और देश-दुनिया में अमन-चैन-सुकून बनाये रखे)